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Haldwani News: चुफाल के अथक संघर्षों की देन है पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच
हल्द्वानी: पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच के संस्थापक अध्यक्ष बलवंत सिंह चुफाल बचपन से ही अन्याय के विरुद्ध संघर्षरत रहने वाले व्यक्ति रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल में जब भी किसी पर अन्याय या अत्याचार होते देखा तो वह उसे सहन नहीं कर पाते थे और उस अन्याय के खिलाफ अकेले ही खड़े हो जाते थे।
वर्ष 1980 में बलवंत सिंह चुफाल ने हल्द्वानी में निवास कर रहे पर्वतीय समाज के लोगों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया और राजनेताओं, सामाजिक संगठनों तथा चिंतकों के साथ विचार-विमर्श कर हीरानगर में पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच की स्थापना की। मंच की स्थापना तो हो गई, लेकिन सवाल यह था कि पर्वतीय समाज के कार्यक्रमों के लिए समाज के लोगों के पास अपनी भूमि कहां से आए।
नैनीताल रोड स्थित कोऑपरेटिव बैंक के बगल में खीम सिंह बिष्ट की जमीन थी। बिष्ट ने यह जमीन संस्था को दी, लेकिन प्रशासन का कहना था कि यह जमीन सरकारी है। जब संस्था ने जमीन पर कब्जा करना चाहा तो प्रशासन ने अवरोध खड़े कर दिए। इसके बाद एक वृहद जन आंदोलन चला और लगभग डेढ़ सौ लोगों ने तीन दिन तक अपनी गिरफ्तारियां दीं। प्रशासन ने घुटने टेक दिए और चुफाल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए बुलाया।
अंत में तत्कालीन जिलाधिकारी बाबूराम ने हीरानगर में वर्तमान भूमि आवंटित करने की उत्तर प्रदेश सरकार को सिफारिश की। 1982 में जेल भरो आंदोलन के बाद संस्था को हीरानगर की भूमि पर स्थापित कर दिया गया। तब से उत्तरायणी का कार्यक्रम हीरानगर में संपन्न हो रहा है। पहले यहां तीन दिवसीय मेला लगता था जो अब आठ दिवसीय कर दिया गया है।
उस दौर से अब तक चुफाल पर्वतीय समाज को एकजुट कर पर्वतीय समाज की संस्कृति के उत्थान और कुमाउनी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव प्रयासरत रहे। उनका मानना था कि हमें अपने समाज को आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ करना होगा। उनका मानना था कि पर्वतीय समाज का युवा वर्ग जब तक अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत नहीं करेगा तब तक पर्वतीय समाज न तो सांस्कृतिक रूप से आगे बढ़ पाएगा और न ही अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर पाएगा। उनकी मंशा हमेशा कुमाउनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की रही।
पहली शोभायात्रा में पहुंचे थे एक लाख लोग
वर्ष 1980 में पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच पंजीकृत हो गया था। 1980-81 में दो साल जो शोभायात्रा यात्रा हुई वह रामलीला मैदान से निकाली गई। 1981 में पहली शोभायात्रा निकली। लोगों में इतना उत्साह था कि हल्द्वानी, लालकुआं, रामनगर, कालाढूंगी, नैनीताल, चोरगलिया क्षेत्र के लगभग एक लाख से अधिक लोगों ने शोभायात्रा में भागीदारी की।
17-18 वर्ष पहले रखी थी गोल्ज्यू मंदिर की नींव
कुमाऊं में घर-घर गोल्ज्यू की ईष्ट देव के रूप में मान्यता है। इसके लिए आज से करीब 17-18 वर्ष पहले पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच में गोल्ज्यू मंदिर की स्थापना का निर्णय लिया गया था। उस समय मंच के संस्थापक सदस्य रहे कुछ लोग विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद चम्पावत, जिसे गोल्ज्यू का प्रथम स्थान माना जाता है वहां पहुंचे। वहां पहुंचते ही एक व्यक्ति में गोल्ज्यू का अवतार हुआ, जिस पर वहां से विधिवत आज्ञा लेकर उत्थान मंच में गोल्ज्यू मंदिर की स्थापना की गई। तब से लेकर आज तक गोल्ज्यू मंदिर में भक्त अपने कष्टों के निवारण के लिए पहुंचते हैं।
हर तरफ शोक की लहर
बलवंत सिंह चुफाल के निधन से हर तरफ शोक की लहर है। उनके निधन की सूचना जैसे-जैसे लोगों को मिली सभी मल्ली बमौरी सैनिक कालोनी स्थित आवास पर पहुंचने लगे। सैकड़ों की संख्या में लोग ने चुफाल को श्रद्धाजंलि अर्पित की। शोक जताने वालों में मंच के अध्यक्ष खड़क सिंह बगड़वाल, महासचिव यूसी जोशी, उपाध्यक्ष गोपाल सिंह बिष्ट, सचिव देवेंद्र तोलिया, कोषाध्यक्ष त्रिलोक बनौली, कमल किशोर, चंद्रशेखर परगाई, कैलाश जोशी, धरम सिंह बिष्ट, यशपाल टम्टा, पूर्व पालिकाध्यक्ष हेमंत बगड़वाल, शोभा बिष्ट, पुष्पा संभल, हुकुम सिंह कुंवर, भुवन चंद्र जोशी, दीवान सिंह मटियाली, मंगत राम गुप्ता, नरेंद्र चुफाल, हरीश मेहता, हरीश चुफाल, एनबी गुणवंत, ललित जोशी, भुवन तिवारी, मुकेश शर्मा, तरुण नेगी, हरेंद्र बिष्ट, कमल जोशी समेत सैकड़ों लोग शामिल रहे। इधर, आज रविवार को उत्थान मंच प्रांगण में शोक सभा रखी गई है।