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पीलीभीत: तिल-तिल दम तोड़ रहा बांसुरी उद्योग, 50 लाख से ढाई लाख रह गई खपत
पीलीभीत: पीलीभीत की बांसुरी महज एक रोजगार माध्यम ही नहीं बल्कि एक विरासत भी है, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब इसके सुर भी बिखरते जा रहे हैं।
प्रदेश के औद्योगिक स्वरूप का विकास करने के लिए सरकार ने वर्ष 2018 में एक जिला एक उत्पाद योजना शुरू की थी। हर जिले में वहां के विशेष उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए एक उत्पाद का चयन किया गया। शासन ने बांसुरी नगरी में बांसुरी को चुना। बांसुरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बांसुरी कारोबारियों को 25 लाख रुपये तक का ऋण देने की बात कही गई थी।
यह दीगर बात है कि इससे जुड़े कारोबारियों को बैकों से महज दो लाख तक का कर्ज ही मिल सका। तमाम समस्याओं से जूझते ही कारोबारियों ने जैसे-तैसे कारोबार को बढ़ाया, लेकिन साल भर से बांसुरी कारोबार निरंतर घटता जा रहा है। कारोबारियों के मुताबिक करीब छह माह पहले तक जिले से 50 लाख से अधिक बांसुरियों की खपत देश भर में होती है, जो अब घटकर महज दो से ढाई लाख पर आ टिकी है।
इन कारोबारियों का कहना है कि अन्य उत्पादों की बिक्री के लिए प्लेटफॉर्म है, मगर बांसुरी के लिए कहीं भी कुछ नहीं है। ऑनलाइन मार्ट के माध्यम से बिक्री की व्यवस्था की गई, लेकिन यह सिर्फ नाम भर है। यदि यही हालात रहे तो एक शताब्दी से अधिक का सफर तय कर चुका यह कारोबार चार-पांच साल के भीतर खत्म हो जाएगा।
कभी था एक करोड़ का टर्नओवर
कारोबारियों के मुताबिक बांसुरी बनाने को जिस क्वालिटी के बांस की आवश्यकता होती है, उसकी आपूर्ति शुरू से ही असम के सिल्चर से हुई। बांसुरी कारीगर नत्था शेख के बाद उनके बेटे अब्दुल नबी ने कमान संभाली। अब्दुल नबी के बेटों खुर्शीद अहमद, नवाब अहमद, शमशाद अहमद, इरशाद अहमद, इकरार अहमद ने नबी एंड संस फर्म बनाकर इस विरासत को विदेशों तक पहुंचाया।
दशकों पूर्व इस कारोबार से 100 से अधिक कारोबारी और सैकड़ों कारीगर जुड़े थे। यहां की बांसुरी अहमदाबाद, भोपाल, हैदराबाद के अलावा श्रीलंका, अमेरिका, फ्रांस, डेनमार्क आदि में आपूर्ति की जाती थी। इन बांसुरियों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 250 रुपये से 40,000 रुपए तक थी।
इकरार अहमद के मुताबिक फर्म की बनी बांसुरी के मशहूर बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया भी कायल थे। बांसुरी वादक रोनू मजुमदार एवं हर्षवर्धन बांसुरी लेने पीलीभीत तक आए थे। कारोबारियों के मुताबिक करीब ढाई दशक पहले जिले में बांसुरी कारोबारियों का करीब एक करोड़ रुपये का टर्न ओवर था। अब यह घटकर 40-50 लाख रुपये ही रह गया है।
कारोबार निरंतर गिरता जा रहा है। कारोबार बढ़ाने को दावे किए गए, लेकिन धरातल पर स्थिति बिलकुल इतर है। बड़े-बड़े ट्रेड शो में बुलाया जाता है, मगर वहां कांउटर लगाने के नाम पर 20 से 70 हजार रुपए तक लिए जाते हैं। हालांकि कुछ पैसा वापस करने की बात कही जाती है। जैसे-तैसे काउंटर लगा भी लें तो नाम मात्र की बिक्री है। ऑनलाइन बिक्री के लिए ओडीओपी मार्ट पर रजिस्ट्रेशन भी है, लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हो रहा---इकरार अहमद, बांसुरी कारोबारी।
शहर के मोहल्ला बुजकसावान में पहले हर तरफ बांसुरी ही बांसुरी दिखती थी। कोई सरकारी मदद न मिलने की वजह से 150 से अधिक परिवार यह काम छोड़कर अन्य काम करने लगे हैं। दो बार आवेदन करने प्रयास किया था लेकिन इतने कागजात मांग लिए गए कि कर्ज लेने का फैसला वापस लेना पड़ा।मजबूरी में एक साथ कई ऑर्डर लेते हैं तो घर का गुजारा होता है। उसमें भी पूरा परिवार जुटता है। बैंकों से कर्ज तक नहीं मिलता--- हुमायुं, बांसुरी कारीगर।
तत्कालीन डीएम ने बांसुरी में जान डालने के किए थे कई प्रयास
तत्कालीन डीएम पुलकित खरे में बांसुरी कारोबार में नई जान डालने के लिए कई प्रयास किए। बांसुरी कारोबारियों के हर जाकर उनकी समस्याएं सुनी। बांसुरी के प्रोत्साहन को लेकर कई प्रयास किए। स्कूलों में बांसुरी वादन की कक्षाओं संचालित कराने की योजना बनाई।
नेशनल बैंबू मिशन के तहत पांच हेक्टेयर में 3125 बांस के पौधे भी रोपे गए, ताकि बांसुरी बनाने में प्रयुक्त होने वाली बांस की प्रजाति का उत्पादन जिले में ही सके, लेकिन उनके ट्रांसफर के बाद कवायद ठंडी पड़ती चली गई।
ओडीओपी योजना के तहत बांसुरी से जुड़े कई कारोबारियों को विभाग के माध्यम से बैंकों से ऋण दिलाया गया है। ऑनलाइन बिक्री के लिए ओडीओपी मार्ट की व्यवस्था की गई है। कारोबारियों से संपर्क कर उन्हें होने वाले ट्रेड शो में भी शामिल कराया जाता है--- आत्मदेव शर्मा, उपायुक्त, उद्योग।