अखबार का विकल्प नहीं बन सकते चैनल, सोशल मीडिया व यूट्यूब

  • बोले पवन सिंह चौहान, हिन्दी पत्रकारों को समय के साथ बनना होगा स्मार्ट

लखनऊ। डिजिटल क्रान्ति के बाद भी हिन्दी पत्रकारिता के प्रचार-प्रसार में कोई खास संकट नहीं दिख रहा है, इसका भविष्य उज्ज्वल है। बस जरूरत इसी बात की है कि बदलते आईटी व सोशल मीडिया दौर में हिन्दी अखबार, पत्र-पत्रिकायें इनके साथ रोजाना रेस करने से बचें और मूलत: अपने समाज व सिस्टम से जुड़े  समाचारों की विश्वसनीयता को बनाये रखे क्योंकि आज भी बहुसंख्यक लोग अपने दिन की शुरूआत ऐसे अखबारों से ही करते हैं।

'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' पर नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स, लखनऊ की ओर से कैंट रोड स्थित एक होटल में गुरुवार को आयोजित 'हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषयक संगोष्ठी के दौरान कुछ प्रमुख वक्ताओं ने अपना मत रखा। इस दौरान प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन के. रविंद्र नायक और प्रमुख सचिव पर्यटन मुकेश मेश्राम दोनों सीनियर आइएएस अफसरों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चुनौतियां तो हैं, मगर इस बीच अवसर भी हैं क्योंकि आज भी पूरे देश-प्रदेश में हिन्दी पट्टी पाठकों की बहुतायत संख्या है। एनबीटी के संपाकद सुधीर मिश्रा ने कहा कि अंग्रेजी मीडियम की ओर बच्चों की दौड़ ने हिन्दी के सम्मुख बड़ा संकट खड़ा किया है। कहा कि इलेक्ट्रॉनिक चैनल, सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे अन्य माध्यम आज हिन्दी पत्रकारिता के लिए चुनौती जरूर हो सकते हैं, मगर अखबार का विकल्प नहीं बन सकते।

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एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कहा कि देवर्षि नारद की भूमिका का निर्वहन वास्तविक अर्थों में हिन्दी पत्रकार ही करते हैं। हिन्दी पत्रकारों को समय के साथ स्मार्ट बनना होगा, समस्या स्वत: दूर होगी। अन्य वक्ताओं ने कहा कि साधन और साध्य के मध्य अंतर को बनाए रखना होगा। तकनीक के साथ स्वयं को अपडेट कर इस चुनौती से निपटा जा सकता है। राज्य सूचना आयुक्त स्वतंत्र प्रसाद गुप्ता ने भी अहम विचार व्यक्त किए। अमृत विचार के स्थानीय संपादक अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता के लिए यह सुखद पहलू है कि हालिया रीडर सर्वे के अनुसार हिन्दी अखबारों का प्रसार निरंतर बढ़ रहा है। पाठक आज भी पत्र-पत्रिकाओं को खोजकर पढ़ना चाहता है, शर्त यह है कि आपके कॉन्टेक्ट में वो बात होनी चाहिए।

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राष्ट्रीय सहारा के समाचार संपादक रामेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सबसे बड़ा संकट है सीखने-सिखाने की परंपरा का खत्म होना है। पत्रकारिता में अभ्यास से लेखनी में धार आती है। डिजिटल मीडिया क्रांति के बावजूद हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ और पत्रकारिता कभी खत्म नहीं होने वाली है। बाबा साहब भीमराव केंद्रीय विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की एसोसिएट प्रो.रचना गंगवार ने कहा कि न्यू मीडिया, भाषा की समझ का कम होना और सिटीजन जर्नलिस्ट की उपस्थिति हिन्दी पत्रकारिता के लिए बड़ी चुनौती है। जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड मास कम्युनिकेशन के निदेशक उपेंद्र पाड़ेय ने कहा कि हिन्दी पत्रकारों में भाषा, शिल्प, कथ्य और विषय की समझ कमजोर होना बड़ी समस्या है। इस मौके पर एनयूजे-आई के राष्ट्रीय संगठन मंत्री प्रमोद गोस्वामी, एनयूजे, उत्तर प्रदेश के संरक्षक द्वै के. बक्श सिंह एवं सुरेंद्र कुमार दुबे, एनयूजे-आई स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन के उपाध्यक्ष अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार अजय जायसवाल, वॉयस ऑफ़ लखनऊ के संपादक मनोज वाजपेयी, दैनिक भास्कर डिजिटल के समाचार संपादक/स्टेट हेड गौरव पांडेय ने भी विचार व्यक्त किए।

इस दौरान वीरेंद्र सक्सेना ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता पर सामयिक संगोष्ठी में सहभागिता के लिए आभारी हूं। इस दौरान यूनियन के प्रमुख पदाधिकारियों में आशीष मौर्य अध्यक्ष व समरेश पति त्रिपाठी, समीर भटनागर सीनियर फोटो जर्नलिस्ट वॉयस आफ लखनऊ, पदमाकर पांडेय जनसंदेश टाइम्स, डॉ. अतुल मोहन सिंह संपादक स्वदेश व रवि गुप्ता तरूणमित्र लखनऊ सिटी इंचार्ज, लाइव यूपी न्यूज़ 24 डिजिटल के सीनियर रिपोर्टर रोहित रमवापुरी, सहित अन्य पत्रकारगण मौजूद रहे।

Edited By: Ballia Tak

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