हमारी सांसें ठहर गईं तो तुम्हारे दिल को मलाल क्यों है : शबीना अदीब 

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ। हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया के तमाम देशों में होने वाले मुशायरों में स्टार की हैसियत रखने वाली शबीना अदीब का मानना है कि हालात अच्छे-बुरे आते रहते हैं, लेकिन मोहब्बत के सिवाय कोई सोल्यूशन नहीं होता है। 'अमृत विचार' की ओर से अमरोहा में हुए मुशायरे में शामिल होने आईं शबीना अदीब से मुशायरों के मंचों से लेकर शायरों के कलाम और बांग्लादेश में चल रहे हंगामे जैसे मुद्दों पर बात हुई तो वह कुछ देर रुकीं और कहा... हमारी सांसें ठहर गईं तो तुम्हारे दिल को मलाल क्यों है, यहीं रहे हैं यहीं रहेंगे बस आज हम घर बदल रहे हैं।

मुशायरों ने सियासत को आइना दिखाने का काम किया
उन्होंने कहा कि हम किसी भी तरह के हालात से निराश नहीं होते, दुःख जरूर होता है लेकिन हम हिन्दुस्तान को छोड़कर तो कहीं जाने से रहे, यहीं जिएंगे, यहीं मरेंगे, यहीं दफ्न होंगे। मुशायरों के मंचों की बात हुई तो वह बोलीं कि मंच समाज का ही आइना होता है। साहित्य में वक्त ही ढलता है। सच्चा साहित्यकार हकीकत बोलता है लेकिन नफरत फैलाने वाले को हम साहित्यकार नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि मुशायरों ने सियासत को आइना दिखाने का काम किया है। शायर की जिम्मेदारी है कि वह मोहब्बत को अमल में लाने की कोशिश जारी रखे। 

शायरी तो अवाम को हौसला देने के लिए 
शबीना अदीब ने कहा कि मुशायरों के मंचों से कई बार दिल्ली और भागलपुर दंगों पर भी बात की गई है, लेकिन अब शायरों ने दंगों पर शायरी से दूरी बना ली है। दुबई में एक शायर से कहा गया कि वह मजहबी शेर नहीं पढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि शायरी तो अवाम को हौसला देने के लिए है। बात को सलीके से कहा जाना चाहिए। बात को इशारों में कहा जाना चाहिए। सीधे चोट करने का असर अच्छा नहीं होता है। उनका कहना है कि समाज में जो घटनाएं होती हैं वह जेहन में महफूज हो जाती हैं। कलमकार ने जो देखा है वह कभी न कभी लिख ही देता है।

रील की वजह से मंचों पर बढ़ने लगे परफार्मर 
सोशल मीडिया की बात चली तो वह बोलीं कि कई बार रील की वजह से शायर खुद ग्लैमर का हिस्सा बन जाता है और कई बार रील की वजह से उसका कोई शेर इतना पापुलर हो जाता है कि उसे दूसरे पढ़ने लग जाते हैं। रील की वजह से मशहूर होने वालों की वैल्यू बढ़ जाती है। यही वजह है कि इधर मंचों पर परफार्मर की संख्या बढ़ने लगी है।

बांग्लादेश पर वह बोलीं... ईश्वर भी वही है खुदा भी वही, जाने क्यों उसके बंदे अलग हो गए 
बांग्लादेश की बात चली तो वह बोलीं कि अपनी डाली से बिछड़े अलग हो गए, पेड़ के सारे पत्ते अलग हो गए, ईश्वर भी वही है खुदा भी वही, जाने क्यों उसके बंदे अलग हो गए। उनसे पूछा कि आप किसके लिए लिखती हैं तो बोलीं, कुछ मंच के लिए लिखते हैं, कुछ मोहब्बतों के लिए लिखते हैं, कुछ भाईचारे के लिए लिखते हैं। शबीना अदीब अपनी शायरी के साथ दुनिया घूमती हैं लेकिन सबसे अच्छा अपना घर कानपुर लगता है। वह कहती हैं कि कानपुर मेरी मोहब्बत है और मेरे शौहर जौहर कानपुरी मेरा गुरूर हैं। उनकी दो किताबें कसक और तुम मेरे पास रहो बाजार में हैं, तीसरी बहुत जल्द आने वाली है। किताबों से उन्हें बहुत मोहब्बत है। 

अपने घर मकनपुर में थीं तो मुशायरों में छुपकर जाती थीं 
बचपन से लिखने वाली शबीना अदीब अपने घर मकनपुर में थीं तो मुशायरों में छुपकर जाती थीं, कानपुर आईं तो जौहर जैसा शौहर मिला तो आसमान में डैने फैलाने को मिले। आसमान में ऊंचाई का सफ़र आसान हुआ। कामयाबी मिली तो जौहर ने उस कामयाबी को सराहा। यही वजह है कि मोहब्बत का सफर जारी है। यह मोहब्बत न मंच पर थकने देती है न जिन्दगी में।

Edited By: Ballia Tak

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