नमाज़ अदा कर अल्लाह की राह में पेश की क़ुर्बानी

गोरखपुर। सोमवार को ईद-उल-अज़हा पर्व शांति, सादगी, मोहब्बत, अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। ईद-उल-अजहा की नमाज़ शहर की सभी ईदगाहों व मस्जिदों में अमनो, सलामती, भाईचारे की दुआ के साथ मुकम्मल हुई। फिलिस्तीनी मुसलमानों के लिए दुआ की गई। लोगों ने गले मिलकर मुबारकबाद पेश की। सबसे पहले मस्जिद सुप्पन खां खूनीपुर व चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर व सबसे आखिर में सुन्नी जामा मस्जिद सौदागर मोहल्ला में नमाज़ अदा की गई। मुस्लिम घरों व तीन दर्जन से अधिक चिन्हित स्थानों पर क़ुर्बानी परम्परा के मुताबिक अदा की गई। बंदों ने रो-रो कर क़ुर्बानी की कबूलियत व अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी। पर्व में खूब उत्साह दिखा।

ईदगाह मुबारक खां शहीद नार्मल, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, गाजी मस्जिद गाजी रौजा, ईदगाह बहरामपुर, ईदगाह फतेहपुर, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर, ईदगाह बेनीगंज, जामा मस्जिद रसूलपुर, मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती,जामा मस्जिद उर्दू बाजार, जामा मस्जिद सुब्हानिया तकिया कवलदह, मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाज़ार, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर सहित सभी इबादतगाहों में भीड़ उमड़ी।

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रंग बिरंगी पोशाकों में नज़र आए छोटे से बड़े

ईद-उल-अज़हा की नमाज़ के लिए लोग सुबह से ही तैयार होने लगे। बच्चों व बड़ों ने नहा कर नया कपड़ा पहना। खुशबू लगाई। सिर‌ पर टोपी पहनी। चल पड़े ईदगाह व मस्जिद की ओर। ज़बान पर तकबीरे तशरीक़ की सदा थी। रंग-बिरंगी, सफेद पोशाकों से हर ओर खुशनुमा नज़ारा था। तय समय पर ईद-उल-अज़हा की नमाज़ अदा की गई। खुतबा पढ़ा गया। दुआ मांगी गई। ईद-उल-अज़हा मुबारक की सदाएं हर ओर गूंजने लगी। छोटे से लेकर बड़ों ने एक दूसरे को गले मिलकर बधाई दी। ईदगाह, मस्जिद व क़ुर्बानीगाह के पास काफी चहल पहल रही। सभी तकबीरे तशरीक़ पढ़ते हुए घर वापस हुए। बहुत से लोग पूर्वजों की कब्रों पर फातिहा पढ़ने कब्रिस्तान भी गए।

इस अंदाज से हुई क़ुर्बानी, ग़रीबों व जरूरतमंदों में बांटा गोश्त

नमाज़ के बाद शहर के मुस्लिमों घरों व गाजी रौजा, दीवान बाजार, रहमतनगर, तुर्कमानपुर, अस्करगंज, रसूलपुर, बक्शीपुर, जाफ़रा बाज़ार सहित चिन्हित तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर पैगंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी को याद करते हुए बकरा, भैंस व पड़वा की क़ुर्बानी परंपरा के अनुसार दी गई। क़ुर्बानी सूरज डूबने तक चलती रही। इससे पहले जानवरों को सजाया गया। क़ुर्बानी के लिए ज़िब्ह करने वाला बूचड़ व कसाई आया, क़ुर्बानी की दुआ पढ़ी गई। अल्लाह की बारगाह में क़ुर्बानी के कबूल होने की दुआ मांगी गई। जानवर ज़िब्ह किया गया। इसके बाद गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा गया। गरीबों, यतीमों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों में गोश्त बांटा गया। ज्यादातर लोग बूचड़ों की वजह से परेशान रहे, क्योंकि क़ुर्बानी के जानवर ज्यादा थे और ज़िब्ह करने वाले कम। घरों व क़ुर्बानीगाह  पर गोश्त लेने वालों का तांता लगा रहा। आसपास व दूरदराज के गांवों से भी लोग कुर्बानीगाह गोश्त लेने आए। मंगलवार 18 जून व बुधवार 19 जून को भी क़ुर्बानी होगी। क़ुर्बानीगाह पर पर्दे वगैरा का भी इंतजाम रहा।

महिलाओं ने पर्व में चार चांद लगाया

ईद-उल-अज़हा की खुशियों में चार-चांद लगाने में मुस्लिम महिलाएं दिलो जान से लगी रहीं। रात में ही ईद-उल-अज़हा के पकवानों का सामान तैयार किया। मेंहदी लगाई। सुबह उठकर फज्र की नमाज़ पढ़ी। बच्चों के साथ घर के अन्य लोगों को तैयार करवाया। फिर जुटीं सेंवइयां बनाने में। सेवइयां बन गई तो मटर, दही बड़ा, रसगुल्ला व सुबह का नाश्ता तैयार किया। इसके बाद क़ुर्बानी की तैयारी शुरु की। क़ुर्बानी हो गई तो बोटी बनवाने व गोश्त की तक्सीम तक जुटी रहीं। जब यह काम खत्म हुआ तो जुट गईं लज़ीज़ पकवानों को बनाने में। झट से गोश्त पोलाव बना डाला। तरह-तरह की शानदार रोटियां बाजार से आईं। तुर्कमानपुर, रसूलपुर, गोरखनाथ, नखास, उर्दू बाजार के पास बाकरखानी, नान रोटी, शीरमाल लेने वालों की कतार लगी रहीं। दोपहर से दावत का दौर शुरु हुआ जो पूरे दिन तक चलता रहा। इससे पूर्व महिलाएं ईद-उल-अज़हा के लिए तैयार हुईं। नहा धोकर किसी ने साड़ी तो किसी ने सलवार सूट पहना। इसके बाद अल्लाह की बारगाह में दो रकात नमाज़ शुक्राना अदा किया। दुआ मांगी। फिर मेहमान नवाजी की तैयारी में जुटीं। पूरा दिन इसी तरह बीता। सभी की खातिरदारी लज़ीज़ पकवानों व सेंवईयों से की गई। बड़ों ने बच्चों को ईदी से भी नवाज़ा। पूरा दिन खुशियों के साथ खुशी बांटते बीता।

मदरसों को दी गई क़ुर्बानी के जानवर की खाल

क़ुर्बानी के जानवर की खाल मदरसे में दी गई। खाल के गिरते रेट के मद्देनज़र अकीदतमंदों ने खाल के साथ कुछ रक़म भी दी, ताकि मदरसों का आर्थिक निज़ाम सही तरह से चल सके।

तकरीर में उलमा किराम ने की क़ुर्बानी पर चर्चा

ईदगाह मुबारक ख़ां शहीद नार्मल में मौलाना फैजुल्लाह कादरी ने कहा कि क़ुर्बानी के जानवर को ज़िब्ह करने में हमारी नियत होनी चाहिए कि अल्लाह हमसे राजी हो जाए। यह भी नियत हो कि मैंने अपने अंदर की सारी बदअख़लाकी और बुराई सबकों इसी क़ुर्बानी के साथ ज़िब्ह कर दी। इसी वजह से दीन-ए-इस्लाम में ज्यादा से ज्यादा क़ुर्बानी करने का हुक्म किया गया है।

सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने अपनी तकरीर में कहा कि पैग़ंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व उनके बेटे पैग़ंबर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने क़ुर्बानी देकर दुनिया को दिखा दिया कि अल्लाह की रज़ा के लिए सब कुछ क़ुर्बानी कर देने का नाम दीन-ए-इस्लाम है।

गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि क़ुर्बानी का अर्थ होता है कि जान व माल को अल्लाह की राह में खर्च करना। इससे अमीर, गरीब इन अय्याम में खास बराबर हो जाते हैं और बिरादराने वतन से भी मोहब्बत का पैग़ाम मिलता है।

मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि क़ुर्बानी हमें दर्स देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो। क़ुर्बानी से भाईचारगी बढ़ती है। उन्होंने दीन-ए-इस्लाम के तमाम अरकानों पर रोशनी डाली। क़ुर्बानी के फजाइल बताए।

मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना मोहम्मद फिरोज निजामी ने क़ुर्बानी के गोश्त को पड़ोसियों, गरीबों, फकीरों में बांटने की अपील की। साफ-सफाई का खास ख्याल रखने की भी बात कही। इसी तरह अन्य मस्जिदों व ईदगाहों में उलमा किराम ने क़ुर्बानी के फजाइल व मसाइल बताए।

उत्साह व चहल पहल का रहा माहौल

मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले रहमतनगर, गाजी रौजा, जाफ़रा बाज़ार, शाह मारूफ, रेती चैक, रसूलपुर, गोरखनाथ, पुराना गोरखपुर, चक्शा हुसैन, जाहिदाबाद, जमुनहिया बाग, फतेहपुर, बड़े काजीपुर, खूनीपुर, इस्माईलपुर, अस्करगंज, नखास, छोटे काजीपुर, उर्दू बाजार, बुलाकीपुर, शेखपुर, बसंतपुर, बेनीगंज, इलाहीबाग, पिपरापुर सहित अन्य जगहों पर उत्साह व चहल पहल का माहौल नज़र आया। विभिन्न जगहों पर सामूहिक क़ुर्बानी हुई। जिसे देखने के लिए छोटे से लेकर बड़े तक जुटे रहे।

काबा शरीफ़ का गिलाफ व कदमे रसूल की कराई जियारत

जाफरा बाजार स्थित सब्जपोश हाउस मस्जिद में बाद नमाज ईद-उल-अजहा मुसलमानों के मुकद्दस शहर मक्का में स्थित काबा शरीफ़ का गिलाफ, पैग़ंबरे हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों का निशान व बगदाद स्थित हज़रत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी ‘गौसे आज़म’ रहमतुल्लाह अलैह के मजार की ईट की जियारत सलातो सलाम हाफिज रहमत अली निज़ामी ने कराई।

Edited By: Ballia Tak

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