लंबित सुधारों का समय

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की शनिवार को होने वाली बैठक में लिए जाने वाले निर्णयों और सिफारिशों पर कारोबारियों, नीति निर्माताओं और आम जनता सहित विभिन्न हितधारकों की नजर बनी हुई है। 

गत वर्ष अक्टूबर के बाद पहली बार होने वाली इस बैठक में, परिषद के पास बहुत सारे नियमित काम हो सकते हैं, जिसमें ऑनलाइन गेम और कैसीनो पर 28 फीसदी शुल्क जैसे पिछले फैसलों से संबंधित स्पष्टीकरण और समीक्षाएं शामिल हैं। उम्मीद की जा रही है कि परिषद जीएसटी की जटिल, बहु-दर संरचना को तर्कसंगत बनाने की योजना को पुनर्जीवित करने जैसी बड़ी चीजों के लिए भी वक्त निकालेगी। 

परिषद के लिए अपने लंबित सुधार संबंधी एजेंडे पर जोर देने का यह सही समय है ताकि इसे मूल रूप से परिकल्पना के मुताबिक वास्तव में एक अच्छा और सरल कर बनाया जा सके। गौरतलब है कि जीएसटी परिषद समय-समय पर जीएसटी व्यवस्था से संबंधित मामलों पर विचार-विमर्श करने के लिए यह बैठक करती है, जिसमें कर दरें, नीतिगत बदलाव और प्रशासनिक मुद्दे शामिल होते हैं। देश में जीएसटी व्यवस्था की शुरुआत एक जुलाई, 2017 को हुई थी। सात वर्ष में यह 1.46 करोड़ से अधिक पंजीकरणों के साथ अप्रत्यक्ष करों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मंच बन गया है। 

जीएसटी परिषद भारत के अप्रत्यक्ष कर ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह सुनिश्चित करती है कि यह देश के आर्थिक लक्ष्यों के अनुरूप हो और नागरिकों व व्यवसायों पर कर का बोझ कम करे। बिजली, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम उत्पादों जैसे बाहर रखे गए मदों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए एक रोडमैप तैयार करने की भी जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यवसाय जगत इन इनपुट के लिए क्रेडिट का लाभ उठा सकें। 

शुक्रवार को वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल (जीटीआरआई) ने 1.5 करोड़ रुपये तक कारोबार वाली कंपनियों के लिए जीएसटी छूट सीमा बढ़ाने, जीएसटी स्लैब की संख्या घटाने और राज्यवार पंजीकरण खत्म करने जैसे कई सुधारों का सुझाव दिया। जीटीआरआई ने कहा कि ऐसा करके जीएसटी को अधिक कुशल और व्यापार के अनुकूल बनाया जा सकेगा। यानि छोटी कंपनियों के लिए अनुपालन को आसान बनाने के साथ-साथ सभी व्यवसायों के लिए इस प्रणाली को सरल बनाने की गुंजाइश है।

 हालांकि जीएसटी परिषद जीएसटी से संबंधित निर्णय लेती है, लेकिन केंद्र सरकार को, राजनीतिक संरचना से परे, लंबित सुधारों को शुरू करना चाहिए। वित्त वर्ष 2023-24 में जीएसटी संग्रह 20.18 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया और इसमें सुधार की गुंजाइश है। यह हमारी सुधरती अर्थव्यवस्था का मजबूत संकेत हैं। 

Edited By: Ballia Tak

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