सुरक्षा परिषद पर सवाल

यूक्रेन युद्ध जारी रहने के मद्देनजर भारत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सवाल करना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र की मुख्य संस्था-सुरक्षा परिषद यूक्रेन संकट को सुलझाने में पूरी तरह से अप्रभावी क्यों रही है? जबकि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है. दरअसल, यह स्वीकार करना होगा कि आक्रामकता के मामले में संयुक्त राष्ट्र खुद को एक ठहराव पर पाता है।

जब देशों की संप्रभु सीमाओं की रक्षा की बात आती है तो मानवता संयुक्त राष्ट्र पर अपनी उम्मीदें नहीं रखती है। वहीं उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में शांति और सुरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से काम करेगा. इसलिए समकालीन वैश्विक चुनौतियों को प्रभावी ढंग से और समय पर संबोधित करने में सुरक्षा परिषद की अक्षमता समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए इसके व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत का यह बयान ऐसे समय आया है जब न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा का उच्च स्तरीय सत्र चल रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर शुक्रवार से अमेरिका की नौ दिवसीय यात्रा पर हैं. विदेश मंत्री न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के वार्षिक सत्र में भाग लेंगे। गौरतलब है कि यूक्रेन संकट पर भारत का रुख शुरू से ही तटस्थता का था. उन्होंने किसी भी पक्ष की आलोचना किए बिना नागरिकों की हत्या की निंदा की और संयुक्त राष्ट्र में मतदान से अनुपस्थित रहे।

भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के उस प्रस्ताव से भी दूर रहा, जिसमें यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा की गई थी। इससे पहले बुधवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए कहा था कि मानवता को अब संयुक्त राष्ट्र से कोई उम्मीद नहीं है. ज़ेलेंस्की ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार करने और इसके स्थायी सदस्यों को प्राप्त वीटो अधिकारों में सुधार करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ये सुधार सिर्फ सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व को लेकर नहीं होने चाहिए बल्कि वीटो पावर के इस्तेमाल को लेकर भी सुधार की जरूरत है.

दूसरी ओर, जी4 समूह के सदस्य देशों-ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत ने चेतावनी दी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार में जितना अधिक समय लगेगा, इसके प्रभावों को लेकर उतने ही अधिक सवाल उठेंगे। कहा जा सकता है कि अब समय आ गया है कि संगठन में स्थायी सुधार के लिए संयुक्त राष्ट्र सुधारों को लेकर वर्षों से चल रही चर्चाओं और परियोजनाओं को हकीकत में बदलना होगा।

Edited By: Ballia Tak

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