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वनों का विस्तार
पर्यावरण संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में वन क्षेत्रों का महत्व सर्वाधिक है। वैश्विक स्तर पर बढ़ती आबादी और विकास की दौड़ ने ऐतिहासिक रूप से जंगलों को नष्ट किया है, जिसका दुष्परिणाम पूरी दुनिया भुगत रही है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण और जलवायु को लेकर सकारात्मक प्रयास में बड़ी वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि 2000 से 2020 की अवधि में वन क्षेत्रों के नुकसान में 23 प्रतिशत की कमी आई है। इसमें भारत ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में भारत की इस प्रतिबद्धता को भी सामने रखा था कि 2070 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। वन क्षेत्रों के विस्तार से उत्सर्जन रोकने के साथ-साथ मिट्टी, जल और वायु को संरक्षित रखने में बड़ी मदद मिलेगी। वन अर्थव्यवस्था में भी उल्लेखनीय सहयोग देते हैं। कुछ समय पहले यह चिंताजनक सर्वेक्षण सामने आया था कि भारत के गांवों में खेतों के किनारे पेड़ों की संख्या में भारी कमी आई है।
शहरी बाढ़, जल-जमाव और संकट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि जलीय स्रोतों और निकासी के नैसर्गिक रास्तों को नष्ट करने के कारण ऐसी समस्याएं आ रही हैं। इस वर्ष की भीषण गर्मी ने भी चेतावनी दे दी है कि पेड़ों, जंगलों और जलीय स्रोतों को संरक्षित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वन क्षेत्रों का बढ़ना उत्साहजनक है, पर जंगली आग की बढ़ती घटनाओं को रोकने पर भी हमें ध्यान देना होगा।