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राज्यों के लिए उदाहरण
समान नागरिक संहिता (यूसीसी ) भारत में एक अत्यधिक विवादित और राजनीतिक रूप से ज्वलंत मुद्दा रहा है। यूसीसी का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य के नीति निर्देशक तत्व का अंग है। इस दृष्टि से राजनीति की सभी धाराएं इस बात पर एकमत रही हैं कि देश में सभी पंथों, आस्थाओं से जुड़े लोगों पर एक ही तरह के कानून लागू होने चाहिएं।
असम और गुजरात जैसे राज्य भी उत्तराखंड वाले मॉडल पर ही समान आचार संहिता को लागू करने की तैयारी में हैं। यूसीसी पर अधिनियम बनाकर में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था।
वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में भाजपा ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रचने के बाद मार्च 2022 में सत्ता संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी। यूसीसी का कुछ लोगों द्वारा राष्ट्रीय अखंडता और लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में समर्थन किया जाता है तो कुछ लोगों द्वारा इसे धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता के लिए खतरा बताकर विरोध किया जाता है।
इधर भाजपा ने इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाया है। न्यायपालिका की तरफ से भी बार-बार इसे लागू करने की जरूरत बताई जा रही है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि देश में इसे लेकर जागरूकता हाल के दिनों में बढ़ी है। यूसीसी सभी नागरिकों के बीच एक समान पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकता एवं धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी।
इससे विभिन्न पर्सनल लॉज़ के कारण उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और पंथ-संबंधी विवादों में भी कमी आएगी। यह सभी के लिए समानता, बंधुता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों को भी संपुष्ट करेगी। बहरहाल, राज्य सरकार की यह एक बड़ी पहल है और इस पर अमल की प्रक्रिया ही नहीं, इसके नतीजों पर भी पूरे देश की नजरें रहेंगी। चूंकि एकता एकरूपता से अधिक महत्वपूर्ण है।